Saturday, April 26, 2008

'परछाई'


उस बिघडी हुई दिवार तक नजर पहुचती है
एक पुरानी बात याद आती है मुझे...
कुछा साल पहले मै उसी दिवारपें कुछ
लिखां करता था...
तब वो मेरे बचपन के दिन थे.
आज वही दिवार रात मै देखता हु मै
तब ऐसा लगता है की,
उस दिवार की परछाई मुझे चिरती हुई
मेरे आरपार जा रही है.
और मै खुदकी ही एक परछाई को देखता रहेता हू.

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